आदित्‍य

आदित्य, देश का पहला स्वदेशीय अभिकल्पित एवं निर्मित टोकामक है। सन् 1989 में इसे कमीशन किया गया था। आदित्य एक मध्यम आकार का टोकामक है, इसे एक दशक से अधिक प्रचालित किया जा रहा है। इसके प्लाज्‍़मा का मुख्य त्रिज्या 0.75 मीटर और लघु त्रिज्या 0.25 मीटर है। 20 टोरोइडल क्षेत्र कॉयल की सहायता से अधिकतम 1.2 T टोरोइडल चुम्बक क्षेत्र को टोरोइडल दिशा में संतुलित दूरी पर उत्पन्न किया गया है। मशीन की प्रमुख उपप्रणालियों एवं प्राचलों के बारे में जानकारी अन्‍यत्र दी गई है।

आदित्य को नियमित रूप से ट्रान्‍सफॉर्मर-कनवर्टर शक्ति प्रणाली के साथ प्रचालित किया जा रहा है। 8.0KG  के टोरोइडल क्षेत्र पर ~100 msec  80-100KA  प्लाज्‍़मा निस्सरणों का नियमित रुप से अध्ययन किया जा रहा है। इस अवधि के दौरान कोर प्लाज्‍़मा उच्चावचनों, प्रक्षोभ एवं अन्य संबंधित कार्यों पर प्रयोग किए गए हैं। इन मापनों के दौरान मानक नैदानिकी को रखा गया। नीचे दिया गया चित्र आदित्य और इससे जुड़ी  सहायक तापन प्रणालियों का दृश्य दर्शाता है।

आदित्य को विभिन्न मोर्चों पर उन्नत किया गया है। निर्वात प्रणाली को अधिक सफाई सुविधाओं की दृष्टि से उन्नत किया गया है। आरंभ में यह पाय गया कि सफल भंजन एवं आरंभन में पहले के कुछ मिलीसेकण्ड में त्रुटि चुम्बक क्षेत्रों की प्रतिपूर्ति आवश्यक है। त्रिज्या चुम्बकीय क्षेत्र प्रदान करने के लिए जुड़े चार द्रुत फीडबैक कॉयल का प्रयोग करके इसे पूरा किया है। TR कॉयल एवं BV कॉयल के कारण चुंबकीय क्षेत्रों के लिए हाल में लिए गए माप से त्रुटि क्षेत्रों की प्रतिपूर्ति की आवश्यकता का संकेत भी मिलता है। प्रचालन दाब परास के सुधार में भी प्रतिपूर्ति की मदद मिली है, जिससे निस्सरण के दौरान हार्ड एक्स-रे कम करने के लाभदायक प्रभाव है। लूप विभवता एवं ऊर्ध्वाधर क्षेत्र पर प्लाज्‍़मा विद्युत धारा फीडबैक को भी क्रियान्वित किया गया है। 

कुछ और नैदानिकियों को एकीकृत किया गया है और ऑन-लाइन पर बनाया है। कुछ अभिकलन/निर्माण चरण में हैं। निस्सरण के दौरान प्लाज्‍़मा ऊर्जा सामग्री को बढ़ाने के लिए सहायक तापन प्रणालियों को एकीकृत किया गया है। एक 20-40 MHz, 200 KW आयन साइक्लोट्रोन अनुनाद तापन (ICRH) प्रणाली को आदित्य निर्वात पात्र से एकीकृत किया गया और पिछले अभियान में सफलतापूर्वक प्रचालित किया गया है। एक 28 GHz, 200 KW जायरोट्रॉन आधारित इलेक्ट्रॉन अनुनाद तापन (ECRH) प्रणाली को आदित्य टोकामक पर सफलतापर्वूक कमीशन किया गया है। आदित्य पर अवरोधों और घनत्व सीमा के पूर्वानुमान के लिए कुछ तंत्रिका नेटवर्क विश्लेषण भी निष्पादित किए गए हैं।






स्थिर अवस्था अतिचालक टोकामक

प्लाज्‍़मा अनुसंधान संस्थान में एक स्थिर अवस्था अतिचालक टोकामक SST-1 अभिकलन एवं निर्माणाधीन है। स्थिर अवस्था स्थितियों में टोकामक में प्लाज्‍़मा प्रक्रियाओं की भौतिकी का अध्ययन करना एवं टोकामक के स्थिर अवस्था प्रचालन से संबंधित तकनीकियों को सीखना SST-1 के उद्देश्य हैं। इन अध्ययनों से अपेक्षा है कि अधिक दीर्घ स्पंद प्रचालनों के लिए टोकामक भौतिकी डाटाबेस को योगदान दें। SST-1 टोकामक एक बृहद अभिमुखता अनुपात टोकोमक है जो महत्वपूर्ण वृद्धि (k) एवं त्रिभुजाकारिता (d) के साथ द्वि शून्‍य डायवर्टर प्‍लाज्‍़मा के बहाव के लिए विन्‍यस्‍त है।

         SST-1 परियोजना का विशिष्ट उद्देश्य 1000s बढ़ाए गये द्वि शून्य डायवर्टर प्लाज्‍़मा को उत्पन्न करना है। टोकोमक भौतिकी में कई परंपरागत सवाल हैं, जिसका स्थिर अवस्था परिदृश्य में फिर से पता लगाया जाएगा। इनमें से कुछ ऊर्जा, कण एवं अशुद्ध परिसीमन, ऊर्जा परिसीमन पर स्थिर में अशुद्धता एवं कोर स्थानीयकृत मोड का प्रभाव, धारा प्रवाह पद्धतियों पर स्थिरता सीमा एवं उसकी निर्भरता, RF क्षेत्रों की उपस्थिति में प्रतिरोधक विदार गतिविधियों, अवरोधों एवं ऊर्ध्वाधर विस्थापन घटनाएँ (VDE) एवं तापीय अस्थिरता से संबंधित हैं। स्थिर अवस्था प्रचालनों में नॉन-इंडक्टिव धारा प्रवाह, प्लाज्‍़मा धारा को बनाए रखता है। विभिन्न धारा प्रवाह पद्धतियों एवं उनके संयोजनों, धारा प्रवाह दक्षता, प्रोफाइल नियंत्रण एवं बूट स्ट्रॅप धारा जैसे धारा प्रवाह के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाएगा। स्थिर अवस्था प्रचालनों के लिए दीर्घीकृत प्लाज्‍़मा सहित एक कुशल डायवर्टर आवश्यक है। डायवर्टर प्रचालन के विभिन्न पहलुओं जैसे स्थिर अवस्था ताप एवं कण निष्कासन, कटाव एवं कण पुन:चक्रण, विकिरणी डायवर्टरों एवं पंप किए डायवर्टरों का अध्ययन किया जाएगा। संलयन अनुसंधान में उन्नत टोकामक व्यवस्था मुख्य रूचि का विषय है। ये व्यवस्थाएं उच्च  bN एवं उच्‍च बूटस्‍ट्रॅप धारा से विशेषीकृत है एवं उच्‍च त्रिभुजाकारिता के साथ प्‍लाज्‍़मा में उच्‍च (H -मोड) तथा अति उच्‍च (VH-मोड) परिसीमन मोड़ सामान्‍य रूप से उपलब्‍ध हैं, हालांकि एसएसटी-1 उन्‍नत टोकामक व्‍यवस्‍थाओं के लिए अनुकूलित नहीं है, मशीन की सीमाओं के भीतर इस दिशा में कुछ प्रयोग पर प्रयास करने के लिए प्रस्‍ताव रखा है।

         प्राचलों का चयन तकनीकी एवं भौतिकी लक्ष्यों द्वारा निर्धारित होता है।  NbTi अतिचालक (सुपरकंडक्टर) को 4.5K पर अतिचालक चुम्बकों के लिए प्रयोग किया जाता है और कंडक्टर पर अधिकतम क्षेत्र 5.1T तक सीमित है। फैलाव सीमित होने के कारण अतिचालक कॉयलों का प्रयोग करते हुए निम्न अभिमुखता अनुपात मशीन का अभिकल्पन करना मुश्किल है। इसके अलावा उच्च अभिमुखता अनुपात के और भी लाभ हैं जैसे उच्च बूटस्ट्रेप धारा, बेहतर परिसीमन आदि। इसलिए हमने SST-1 में बृहद अभिमुखता अनुपात ( ~5) चुना है। अन्य टोकोमकों में उच्च त्रिभुजाकारिता  (d~0.4-0.8) के साथ परिसीमन (VH मोड) एवं  bN में पर्याप्त सुधार पाया गया है। दीर्घीकरण प्लाज्‍़मा की धारा वहन क्षमता को सुधारता है। दीर्घीकरण से k~1.6-2.0 के परास में  bN में सुधार पाया गया है। इसलिए हमनें इस परास के समान  k एवं  d के परास को चुना हैं। बड़ी संख्‍या में विपथक प्‍लेटों के बीच शक्ति के वितरण के लिए द्वि शून्‍य विन्‍यास अनुमति देता है। इस प्रकार प्रति प्‍लेट ताप भार कम होता है। इसलिए हमने द्वि शून्‍य विन्‍यास का चयन किया है, इस प्रावधान के साथ कि भविष्‍य में एकल शून्‍य प्रचालन कर सकें।

         मशीन में प्लाज्‍़मा केन्द्र पर 1.1 मी का बडा त्रिज्या, 0.20 मी का छोटा त्रिज्या, 3.0 T का एक टोरोइडल क्षेत्र और 220 KA की प्लाज्‍़मा विद्युत् धारा है। 1.7 से 1.0 के परास में दैर्घ्‍य वद्धि के साथ दैर्घीकृत प्लाज्‍़मा एवं 0.4 से 0.7 के परास में त्रिभुजाकारिता को उत्पन्न किया जा सकता है। इसमें हाईड्रोजन गैस का प्रयोग किया जाएगा एवं प्लाज्‍़मा निस्सरण अवधि 1000s होगी। सहायक धारा प्रवाह मुख्य रूप से 3.7 GHz पर निम्न संकर धारा प्रवाह (LHCD) के 1.0 MW पर आधारित होगी। सहायक तापन प्रणालियों में 22MHz से 91MHz पर आयन साइक्लोट्रॉन अनुनाद तापन (ICRH) का 1MW, 84 GHz पर इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद तापन (ECRH) का 0.2MW एवं 10-80 KeV के परास में चर पुंज ऊर्जा सहित 0.8 MW (80 KeV पर) की शीर्ष शक्ति के साथ उदासीन पुँज अंत:क्षेपण (NBI) प्रणाली शामिल है।

         SST-1 टोकामक में अतिचालन कॉयल को टोरोइडल क्षेत्र (TF) एवं पोलोइडल क्षेत्र (PF)  दोनों के लिए लगाना है। TF कॉयलों के बारे में रखा एक अति उच्च निर्वात पात्र (UHV) संगत निर्वात पात्र प्लाज्‍़मा मुखित घटकों (PFC) पर रखा है। एक उच्च निर्वात क्रायोस्टेट सभी SC कॉयलों एवं निर्वात पात्र से जोड़ा गया है। निर्वात पात्र एवं SC कॉयलों के बीच और क्रायोस्टेट एवं SC कॉयलों के बीच द्रव नाइट्रोजन (LN2) शीतलित तापीय शील्ड SC कॉयलों पर विकिरण ताप भार को कम करता है। सामान्य कंडक्टर ओमीय ट्रांसफॉर्मर प्रणाली प्लाज्‍़मा आरंभ करने एवं प्रारंभिक अवधि के लिए धारा को बनाए रखने के लिए प्रदान किया जाता है। प्लाज्‍़मा के आरंभ चरण में गोलाकार प्लाज्‍़मा संतुलन के लिए ऊर्ध्वाधर क्षेत्र कॉयलों का एक जोडा प्रदान किया है। निर्वात पात्र के भीतर रखी सैडिल कॉयलों का एक सेट प्लाज्‍़मा का तीव्र ऊर्ध्वाधर नियंत्रण करता है जबकि PF कॉयलों का प्रयोग आकार नियंत्रण के लिए किया जाता है। अन्य उपप्रणालियों में पूर्व-आयनन के लिए रेडियो आवृत्ति (RF) प्रणालियाँ, सहायक धारा प्रवाह एवं तापन, संपूरक तापन के लिए उदासीन पुँज अंत:क्षेपण(NBI) प्रणाली, द्रव हीलियम (LHe) एवं LN2 तापमानों पर क्रायोजेनिक प्रणालियाँ, विभिन्न उपप्रणालियों से ताप निष्कासन के लिए प्रशीतलित जल प्रणाली शामिल है। प्लाज्‍़मा एवं मशीन मॉनीटरन के लिए नैदानिकी की एक बडी संख्या वितरीत आंकडा प्रापण एवं नियंत्रण प्रणाली के साथ निक्षेपित की जाएगी।



मौलिक प्लाज्‍़मा भौतिकी प्रयोग

IPR में कई मौलिक प्लाज्‍़मा भौतिकी प्रयोग प्रचालन पर हैं। कुछ प्रमुख प्रयोग हैं- बृहद आयतन प्लाज्‍़मा युक्ति(LVPD), मुक्त इलेक्ट्रॉन लेसर(FEL) प्रयोग, नॉन-न्युट्रल टोरोइडल प्लाज्‍़मा, डस्टी प्लाज्‍़मा प्रयोग, प्लाज्‍़मा नाइट्राइडिंग अध्ययन, प्लाज्‍़मा इमर्स्ड आयन अंतर्रोपण, एनोड आर्क अध्ययन, रेडियो आवृत्ति प्रयोग आदि।

         LVPD प्रयोगों में व्हिस्लर तरंगों के उत्तेजन एवं संचरण पर विस्तृत अध्ययन किए जा रहे हैं। FEL प्रयोग में परत आपेक्षिकीय इलेक्ट्रॉन पुँज को पचास अवधि विद्युतचुम्बक विग्लर के माध्यम से संचरित किया गया है एवं सूक्ष्मतरंग आवृत्ति प्रसार में विकिरण देखा गया है। नॉन-न्युट्रल प्लाज्मा प्रयोग में टोरोइडल चुम्बकीय क्षेत्र में डाइकोट्रॉन अस्थिरता एवं इलेक्ट्रॉन क्‍लाउड व्यवहार का अध्ययन किया गया है। धूलीय (डस्ट) ध्वनिक तरंगों का उत्तेजन, कूलॉम क्रिस्टल आदि के गठन का अध्ययन धूलीय प्लाज्‍़मा प्रयोगों में किया है। प्लाज्‍़मा-सतह अंत:क्रिया की भौतिकी एवं तरंग-कण अंत:क्रिया को प्लाज्‍़मा नाइट्राइडिंग एवं RF प्रयोगों में क्रमश: अध्ययन किया है।




एफसीआईपीटी (FCIPT)

औद्योगिक प्लाज्‍़मा प्रोद्योगिकी सुविधा केन्द्र, प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान को उद्योग से जोड़ता है। सामग्री संसाधन एवं पर्यावरण सुधार के लिए उन्नत प्लाज्‍़मा आधारित तकनीकियों के निर्माण के लिए प्लाज्‍़मा विज्ञान एवं संबद्ध तकनीकियों में ज्ञानाधार का उपयोग किया जाता है।

सन् 1997 में  विकास, ऊष्मायन, प्रदर्शन, निर्माण एवं अंतरण के माध्यम से आईपीआर की प्लाज्मा तकनीकियों के वाणिज्यिक उपयोग को बढावा देने के लिए एफसीआईपीटी  की स्थापना की गई। इस केंद्र में प्रक्रिया विकास एवं उपकरण प्रयोगशालाएं, जॉबशॉप, सामग्री विशेषीकरण एवं निर्माण सुविधाएं हैं। मान्यकरण प्रयोगों, उसके विस्‍तार एवं पायलट संयंत्रों को स्‍थापित करके उन्नत प्लाज्‍़मा प्रक्रिया विकास को साकार किया गया है। एक नये विचार को शीघ्रता से साकार करने के लिए संकल्‍पना से लेकर उसके उत्‍पादन तक विकसित करने के लिए कई संख्या में प्रोटोटाइप रिएक्टर उपलब्ध हैं। प्लाज्‍़मा आधारित तकनीकियों के औद्योगिक स्वीकृति को बढ़ावा देने और उद्यमियों के लिए संबंधित तकनीकी-वाणिज्यिक डाटा निर्माण करने के लिए कार्यशाला में नई तकनीकी का ऊष्मायन एवं प्रदर्शन किया जाता है। यह कार्यशाला औद्योगिक पैमाने पर सतह एवं सामग्री उपचार के लिए जॉब तक निष्पादित करती है। उद्योग, अनुसंधान संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों के उपयोगकर्ताओं के लिए उन्नत उपकरणों से युक्त सामग्री विशेषीकरण सुविधा प्रस्तुत  है। उन्नत प्‍लाज्‍़मा रिएक्टरों का निर्माण तकनीकियों के सफल वाणिज्यिक अंतरण के लिए एक और महत्वपूर्ण गतिविधि है।

यह केन्द्र स्वदेशी तकनीकियों को अपनाने में रूचि रखने वाले उद्योगों को औद्योगिक तकनीकियों एवं सुविधा सेवाओं का एक पूर्ण पैकेज का प्रस्ताव देने के लिए एक ही छत के नीचे उपर्युक्त सभी गतिविधियों के लिए एक आदर्श वातावरण उपलब्ध कराता है।