इतिहास

प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान की जड़े 1970 के दशक के प्रारंभ में भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) में अंतरिक्ष प्लाज़्मा की परिघटना को समझने के लिए प्लाज़्मा भौतिकी पर सैद्धांतिक  तथा प्रायोगिक अध्ययन हेतु प्रारंभ किये गए संगत एवं अंतःक्रियात्मक कार्यक्रम से जुड़ी है।

प्रारंभिक अध्ययन में E x B अस्थिरता, अक्षीय इलेक्ट्रोजेट की विशेषता, पुच्छलतारीय प्लाज़्मा सौर पवन अंतःक्रिया के संदर्भ में प्लाज़्मा निष्क्रिय गैस अंतःक्रिया एवं ऐडियाबेटिक चुम्बकीय दर्पण में एकल कण परिरोधन को शामिल किया गया। अरैखिक आयन ध्वनिक तरंगों एवं दोहरी परतों के प्रयोगों को बाद में इसके अंतर्गत जोड़ा गया। 1978 में प्रारंभ किये गए टोराइडल उपकरणों में सुदॄढ टोराइड एवं इलेक्ट्रॉन रिंग बनाने हेतु तीक्ष्ण इलेक्ट्रॉन पुँजों का इस्‍तेमाल करके उच्च शक्ति प्लाज़्मा प्रयोगों से संलयन - संबंधी प्रयोगों को पुन:आरम्भ किया गया।

चुम्बकीय परिसीमित उच्च तापीय प्लाज़्मा पर अध्ययन आरंभ करने के लिए भारत सरकार के समक्ष  प्रस्ताव रखा गया, जिसे सन् 1982 में स्वीकार किया गया एवं इसके परिणाम स्वरूप विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित प्लाज़्मा भौतिकी कार्यक्रम (PPP) की स्थापना हुई। भारत के पहला टोकामॅक आदित्य की डिज़ाइन और इंजीनियरिंग इसी समय प्रारंभ की गई। 1984 में इन गतिविधियों को अहमदाबाद शहर की सीमा से लगे भाट गाँव स्थित एक स्वतंत्र प्रांगण में ले जाया गया।

इसके बाद 1986 में  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत PPP  एक स्वायत्‍तशासी संस्था के रूप में प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान में परिणित हुआ। 1989 में आदित्य के संस्‍थापन के साथ ही पूर्ण रूप से टोकामॅक प्रयोग प्रारंभ किये गये। एड्ज टर्बुलेंस के कारण ट्रांसपोर्ट पर केन्द्रित एक गतिशील प्रायोगिक प्रोग्राम इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण खोज है। इस अवधि में प्लाज़्मा प्रोसेसिंग एवं मौलिक तथा कंप्‍यूटेशनल प्लाज़्मा अनुसंधान में नये कार्यक्रमों का विकास भी हुआ।

1995 में 1000 सेकण्ड तक प्रचालन में सक्षम द्वितीय चरण के सुपरकन्डक्टिंग स्थिर अवस्था टोकामक SST-1 के निर्माण हेतु लिये गए निर्णय के साथ ही संस्थान तेजी से विकास करने लगा तथा परमाणु ऊर्जा विभाग की प्रशासनिक छत्रछाया के अंतर्गत आ गया। स्पंदित शक्ति, उन्नत डायग्‍नॉस्टिक्‍स, कंप्‍यूटर मॉडलिंग, रेडियो आवृत्ति (आरएफ) तथा न्‍यूट्रल बीम हीटिंग प्रणाली आदि का विकास जैसे नये प्रमुख कार्यक्रम इसमें शामिल किये गये। औद्योगिक प्लाज़्मा गतिविधियों को औद्योगिक प्लाज़्मा प्रौद्योगिकी सुविधा केन्द्र के अंतर्गत पुनर्गठित किया गया तथा 1998 में गांधीनगर में एक अलग प्रांगण में स्थानांतरित किया गया।

प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान, प्लाज़्मा भौतिकी तथा संबंधित तकनीकियों में मौलिक तथा अनुप्रयुक्त अनुसंधान के क्षेत्र में अपने योगदान के कारण अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है। इसके पास 200 वैज्ञानिक तथा इंजीनियर हैं जो कि सैद्धान्तिक प्लाज़्मा भौतिकी, कंप्‍यूटर मॉडलिंग, सुपरकंडक्टिंग चुम्बक तथा क्रायोजेनिक्‍स,  अति-उच्च निर्वात, स्पंदित शक्ति, सूक्ष्मतरंग एवं आरएफ, कंप्‍यूटर आधारित नियंत्रण एवं डाटा अधिग्रहण तथा औद्योगिक, पर्यावरणीय एवं महत्‍वपूर्ण प्लाज़्मा उपकरणों में विशेष रूप से दक्ष हैं।